हिंदू शास्त्रों के अनुसार चतुर्थी तिथि भगवान श्रीगणेश को समर्पित है। भगवान गणेश भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं। हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर महीने दो चतुर्थी तिथियां आती हैं। जिन्हें संकष्टी चतुर्थी और विनायक चतुर्थी कहा जाता है।
अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष के दौरान विनायक चतुर्थी मनाई जाती है। और हर महीने पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष के दौरान संकष्टी चतुर्थी।
महीना | दिनांक | दिन | व्रत का नाम | तिथि का समय |
---|---|---|---|---|
जनवरी |
14 जनवरी, 2024 |
रविवार |
विनायक चतुर्थी | पंचांग चेक करें |
फरवरी |
13 फरवरी, 2024 |
मंगलवार |
विनायक चतुर्थी | पंचांग चेक करें |
मार्च |
13 मार्च, 2024 |
बुधवार |
विनायक चतुर्थी | पंचांग चेक करें |
अप्रैल |
12 अप्रैल, 2024 |
शुक्रवार |
विनायक चतुर्थी | पंचांग चेक करें |
मई |
11 मई, 2024 |
शनिवार |
विनायक चतुर्थी | पंचांग चेक करें |
जून |
10 जून, 2024 |
सोमवार |
विनायक चतुर्थी | पंचांग चेक करें |
जुलाई |
10 जुलाई, 2024 |
बुधवार |
विनायक चतुर्थी | पंचांग चेक करें |
अगस्त |
08 अगस्त, 2024 |
गुरुवार |
विनायक चतुर्थी | पंचांग चेक करें |
सितम्बर |
07 सितम्बर, 2024 |
शनिवार |
विनायक चतुर्थी | पंचांग चेक करें |
अक्तूबर |
07 अक्तूबर, 2024 |
सोमवार |
विनायक चतुर्थी | पंचांग चेक करें |
नवम्बर |
05 नवम्बर, 2024 |
मंगलवार |
विनायक चतुर्थी | पंचांग चेक करें |
दिसम्बर |
05 दिसम्बर, 2024 |
गुरुवार |
विनायक चतुर्थी | पंचांग चेक करें |
क्या आज का दिन आपके लिए शुभ है? अपनी जन्म कुंडली के अनुसार शुभ मुहूर्त जानने के लिए सर्वश्रेष्ठ वैदिक ज्योतिषीयों के साथ चैट करें या उन्हें फोन करें!
Utsav Joshi
Rajkumar Birla
ShrutiA
हिंदू कैलेंडर के भाद्रपद महीने में मनाई जाने वाली विनायक चतुर्थी को सबसे अत्यधिक महत्व है। इसे गणेश चतुर्थी कहा जाता है, जो भगवान श्रीगणेश के जन्म का प्रतीक है। हालांकि, भक्त प्रत्येक चतुर्थी तिथि को उपवास रखते हैं।
गणेश चतुर्थी 10 दिनों तक मनाई जाती है और अंतिम दिन, लोग गणेश की मूर्ति को समुद्र या किसी अन्य जल स्त्रोत में विसर्जित कर देते हैं। इन मूर्तियों को उस स्थान पर स्थापित किया जाता है जहां गणेश चतुर्थी की पूजा की जाती है।
अंगेजी कैलेंडर के अनुसार, गणेश चतुर्थी ज्यादातर अगस्त या सितंबर के महीने में मनाई जाती है। महाराष्ट्र में, यह सबसे अधिक मनाया जाने वाला त्योहार है। इस समय के दौरान लोगों को खुशी के साथ ‘गणपति बप्पा मोरिया’ कहते सुना जा सकता है। और अंतिम दिन, भक्त गणेशजी के भजन गाते हुए उनकी मूर्ति को समुद्र में विसर्जित करने के लिए ले जाते हैं।
गणेश चतुर्थी के पीछे लोकप्रिय कहानी यह है कि भगवान श्रीगणेश हमारी इच्छाओं को पूरा करने के लिए कैलाश पर्वत से मनुष्यों के बीच आते हैं। और उसके बाद, वह अपने माता-पिता के पास लौट आता है जो समुद्र में उसकी मूर्ति के विसर्जन का प्रतीक है। साथ ही कई लोगों का मानना है कि जब वह वापस जाते हैं तो उनकी सारी परेशानियां अपने साथ ले जाते हैं।
मान्यता के अनुसार देवी पार्वती ने स्नान करते समय किसी को भी वहां प्रवेश करने से रोकने के लिए रेत से भगवान गणेश की रचना की थी। तभी, वहां भगवान शिव आते हैं और गणेशजी उन्हें वहीं रूकने को कहते हैं। इससे भगवान शिव क्रोधित हो जाते हैं और परिणामस्वरूप गणेशजी का सिर काट देते हैं। इसके बाद देवी पार्वती बताती हैं कि गणेश उनकी संतान है और भगवान शिव से उन्हें वापस जीवित करने के लिए कहती हैं। भगवान शिव देवताओं से एक ऐसे मृत प्राणी का पता लगाने के लिए कहते हैं, जिसका सिर उत्तर दिशा की ओर हो। बहुत खोजने पर, उन्हें केवल एक मरा हुआ हाथी मिलता है, अतः वे उसे भगवान शिव के पास ले आते हैं। वह उस सिर को भगवान गणेश की गर्दन पर रख देते हैं और वह फिर से जीवित हो जाते हैं। इसी कारण उन्हें वक्रतुण्ड और गजानंद भी कहा जाता है।